“Adhe Adhure” — драма на языке хинди
“Adhe Adhure” – драма написанная в 1969 году Мохан Ракешем. Это драма одна из первых вывела на сцену среднюю городскую семью и ее проблемы.
Ниже представлено эссе на хинди на тему данного произведения. Автор эссе является преподавателем нашего курса “Живой Хинди”, Бакалавр Хинди, Banaras Hindu University, Varanasi, India.
एकतेिरना पेशाकोवा
आज िहंदी नाटक आधुिनक बोध सेसमंिधत है। नाटक अब के वल मनोरंजन नही रहा, बिल जीवन की िविवधताओ ंको भी रंगमंच मेपसुत करनेमेसकम है। आधुिनक नाटक रंगमंच को मूलवान, साथरक और जीवंत बना िदया। इस िदशा मे मोहन राके श का नाटक “आधे – अधूरे” मधवगीय पिरवार की समसाओ ंको पहली बार मंच पर लाया और यथाथररप मेपसुत िकया। पहलेके नाटको के मुक़ाबलेराके श के नाटक मेनयापन आता है। यह नयापन नाटक की भाषा – शैली और पातो मेपितिबंिबत है। इस नाटक मेआधुिनक जीवन का िचतण अतंत जीवंत है।
यहाँमोहन राके श नेमधवगीय सी और पुरष का अंतदरद िदखाया हैऔर साथ ही पिरवार मेिबखराव, जो मनुष के अधूरेपन और अहंकार के कारण उभरता है, भी दशारया है। पिरवार के सदसो मेएक पकार की िरकता है, जो सभी लोगो को अपनो सेदूर कर देता है। लोग साथ रहतेहै, पर साथ नही देतेहै।
इस नाटक की सी – सािवती, ४० साल की औरत है, िजसके तीन बचेहै – लड़का अशोक, बड़ी लड़की िबनी और छोटी लड़की िकनी । बीस साल पहले सािवती नेमहेदनाथ सेशादी की थी । उसी समय सेमहेदनाथ मेसािवती िसफ़र “अधूरा आदमी” देख पा रही है। महेदनाथ का अिभन िमत जुनेजा अंत मेकहता है, िक सािवती उसको भी महेदनाथ सेबेहतर समझ लेती थी, पर जुनेजा से नकारे जाने के कारण उससेभी नफ़रत करनेलगी । सािवती एक “पूरा आदमी ” की तलाश मेहै। इसी कारण वो दूसरेआदमी सेिमलती हैऔर घर बुलाती है।सष बात वही हैजो उनके बेटेअशोक नेकही: वासव मेसािवती आदमी का विकत नही देखती हैपर आदमी की आिथर क िसित, पेश और औक़ात सािवती के ववहार का आधार बन जातेहै।
सािवती महेदनाथ सेबहत अपेकाए रखती है, जो ना पूरी होनेके कारण असंतोष जन लेता है। उनकी नज़रो मेमहेदनाथ अधूरा तो है, पर का वो सयं मुकमल है? सािवती ना बचो का धान रख पा रही है, ना अपनेपित को पेम और िवशास देने मेसकम है। कहतेहै: िक औरत अपनेसभाव से पित का आधार बन जाती है, उनका िवशास और पेम पित की शिक बन सकता है। का सािवती नेऐसा कु छ िकया, िक महेदनाथ वापार मेअसफल होनेके बाद अपनी शिक बटोर कर उठ सके ?
यह कौन सी चीज़ है, िजसनेएक सी को ऐसा बना िदया ? अगर पिरवार के सदस पािरवािरक संबंधो को नही समझते है, िववाह की मयारदाओ ंके पित उदासीन है, उनका मन इचाओ ंऔर अहंकार सेभरा हआ है, — तो इसकी जड़ हमे कहाँ खोजना होगा? कहाँहैवो शुरआत, जहाँसेिवकृ त मानिसकता और िरकता उभर कर आतेहै?
महेदनाथ के विकत को देखेतो सष रप सेहमे उसकी अकमता िदख जाएगी। वापार मेअसफल हो कर घर पर बैठा रहता है, ना अपनेआप सेख़ुश हैना अपने पिरवार को ख़ुश रख सकता है। सयं कोई भी फ़े सला नही लेपाता हैपर अपनेिमत जुनेजा सेसलाह लेता रहता है। यह उसका “अधूरापन” िजससेसािवती को नफ़रत है, वो कहाँसेआता है?
ऐसे माँ – बाप बचो को का देनेलायक़ है ? उनोनेआपनेसेऔर अपनो सेनफ़रत करनेके अलावा का िदया बचो को ? बड़ेहोनेके कम मेइसी पिरवार मेरहतेहए उसनेका सीखा ? ऐसेपिरवार मेजो बचेपैदा होतेहैवेिसफ़र अपनेमाँ – बाप का नवीन संसरण बन जातेहै। बड़ी लड़की की िसित वही है। वह भी सब कु छ गलत करती है। वो घर सेभाग गई इस उमीद मेिक घर के बाहर उसका जीवन नया हो जाएगा, पर सच यह हैिक अपने घर की िसित को लेकर अपना नया घर बसा िलया। िबनी ख़ुद नही समझती है, वो का हैइस घर मे, जो उनको साँस नही लेने देता है ? उनको लगता हैिक वो एक िचिड़या घर मेएक िपंजरेमेरहती है।
अशोक पापा की तरह हर समय आलस मेरहता है, पढ़ाई मेफ़े ल हआ और काम भी करनेको इचुक नही है। छोटी लड़की िकनी अनुशासनहीन है, कूँिक उसको ना कोई सुननेवाला हैना धान देनेवाला है।
ऐसा लगता हैजैसेबचो मेिरकता पवेश कर चुकी हैिजसने उनके माँ – बाप को अंदर सेखा िलया है, यह ख़ालीपन, जो घर मेघुस गया है, वो कहाँसेआता है?
यह िवशेष पिरवार की कहानी नही है। हम इस कहानी मेअपनेआपको भी कही ना कही पा सकतेहै।
सतंतता पानेके बाद जब भारत मेमध वगरका उदय हआ, लोग संयुक पिरवार से अलग होनेलगे। अपनी संसृ ित सेअलग हो कर नई िदशा मेअपनेआपको खोजने लगे। मनुष परमरागत समाज के िवघटन के बाद नया मूलो की खोज मेभटक गए। हो सकता है, वहाँ समसाओ ंकी जड़ हो – जो लोग अपना आधार खो बैठे, उनका जीवन ख़ालीपन, साथर, अहंकार सेभर गया है। इस नाटक मेपिरवितर त जीवन शैली और उससेउतन समसाओ ंको िदखाया गया है।
यहाँएक सवाल और आता है – चिरतो के इस िवघटन का िज़मेदार कौन है ? वह सयं या पिरसिटितयाँ?
अशोक, िबनी और िकनी को जागरक मनुष का भाव बोध कै सेिमलेगा ? वे समपरण ? पेम और मयारदा के साथ नया जीवन जी सकतेहै? यह सवाल हम सब को समोिधत है। हम अपना जीवन का आधार का बनातेहै? यह नाटक पुरष और मिहला के ख़ालीपन को पकट करता है, जो बीस साल सेसाथ रहतेहए एक दूसरेको पेम और इजत ना देपाए। यह नाटक सी की मुिक की आकांका सेजुड़ा , जो वासव मेसी को अपनेआप सेऔर दूर कर देता है। यह नाटक पुरष के अधूरापन का भी है, िजसने अपने अिसत का आधार खो िदया है।
पारम मेकालेसूट वाला आदनी कहता है: “िफर एक बार, िफर सेवही शुरआत। मै आप मेसेहर एक विक हँ …..”।
नाटक अपनेअिनिशत अंत तक पहँचता है। नाटक का आरम पािरवािरक संबंधो के तनाव सेहोता हैऔर अंत भी तनावपूणरऔर पीड़ादायक है। वैसेभी, यह कोई अंत हो नही सकता – िसफ़र एक चकवूह है।
Автор эссе является преподавателем нашего курса “Живой Хинди”, Бакалавр Хинди, Banaras Hindu University, Varanasi, India Екатерина Пешакова
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